Sunday, April 30, 2017

“पहाड़ जब रोता है”

“पहाड़ जब रोता है”
कल रात तूफान आया था
गर्मी थी, उमस थी, चाहत बारिश की थी
मगर, बस तूफान आया था 
खिड़कियों को बंद करते पहला ख्याल तुम्हारा ही तो आना था
बाहर शोर था, तूफान था
इधर भी यादें थीं, तूफान था
और साथ में था पहाड़ सा अभिमान
तुम्हारे यादों के तूफान पहाड़ से टकरा रहे थे
मैंने फिर एक बार खिड़की के उस पार का जायजा लिया
बहुत से कच्चे आम जमीन पर बिखरे पड़े थे, पत्ते और कुछ टूटे डाल भी
एक कुत्ता भी तूफान पर अपनी नाराजगी दर्ज कर ज़ोर से भौंका
मगर ज्यादा देर विद्रोह के विगुल बजाए न रह सका
तूफान ने बेरहमी से विद्रोह को कुचल दिया, आखिर वह कुनमुनाने लगा
तभी दस्तक हुई
जाने क्यों, मैं बहुत आशावान हो गया, आखिर......... आखिर.............
मेरी मायूसी पर हँसती, चिढ़ाती एक जोड़ी थी, तूफान में फँस गए हम, कुछ देर के लिए........
मुझे हमारी बातें याद आई
सोचने लगा, तुम होती तो ये होता, वो होता, अजनबी न रहकर गुलजार होता
जैसे कभी मैं अजनबी था, मगर अजनबी ही रह न पाया
वे रात भर रहे, पहले तो कुछ गुमसुम थे, शायद तूफान का असर था
मगर फिर खिलखिलाने लगे, रात को जगमगाने लगे
मैं जागता रहा, यादों के रील चलाता रहा
उनके जीवन के युगलसंगीत को जो जी रहे थे, रात भर सुनता रहा
उसके आंच में तपता रहा, दर्प चूर होता रहा
आज अल सवेरे वे धन्यवाद कह चले गये, मैंने भी उन्हें मन ही मन धन्यवाद दिया
सुनो, आज बारिश होगी
 मन कहता है, खूब बारिश होगी,
जानती हो न, पहाड़ जब रोता है, बारिश होती है!!
आज बारिश होने दो। बस, आज बारिश होने दो। जिंदगी सिर्फ एहसास ही नहीं है मौका भी है, बन जाने दो। बहुत कुछ जुड़ जाएगा। फिर खिलखिलाएगा। यकीन करो। यकीन करो।

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