Saturday, April 8, 2017

“इच्छामति की इच्छा” (कहानी)

“इच्छामति की इच्छा” (कहानी)


कांचन फकीर ने घड़ी देखी। रात के साढ़े नौ बज गए थे। अब कोई खरीदार आने वाला न था। वैसे भी, उसका कपड़ा का दुकान, गली के आखिर में था। वह बहलोल का इंतजार कर रहा था।
दरअसल वह एक बंगाली मुसलमान था। उसकी आईडेंटिटी उसे भारतीय बताता था पर जानने वाले जानते थे वह मूलत: बांग्लादेशी ही था। उसका नाम ही उसका फ्रंट था। मालदा के रास्ते घुस आया था। इधर सैकड़ों खुले जगह थे और हजारों लोगों का आना जाना था। वह भी सयाना था, चुपके से एजेंट के मार्फत भारत घुस आया था और यही उसके लिए जी का जंजाल बन गया। एजेंट ने उसका इंडिया में मुकाम बना दिया और इधर उसकी जानकारी बेच दी। लिहाजा कांचन ब्लैकमेल का आसान शिकार बन गया। अब वह मजबूर था।
आज बहलोल के आने की तारीख थी। अब तो दस बज गए थे। बाजार बिलकुल सूना हो चुका था। उसे एक लिफाफा सौंपना था। यह कोई आम लिफाफा न था। इसमें अंतर्राष्ट्रीय मूल्य के पंद्रह लाख के हेरोइन थे। वह डरते हुए इसी का इंतजार कर रहा था। मगर बहलोल तो अब तक आया नहीं। ऐसा कभी न हुआ। वह दुकान बंद करने का इरादा करने लगा।
ठीक तभी वह औरत आई। उसकी उम्र कोई पच्चीस साल थी। वह देहाती साड़ी पहने थी और होठ पान से लाल थे। अपने माथे पर आधी पल्लू डाले थी और बड़े अंदाज से पान चबा रही थी। बड़े मादकता से कांचन को देख बोली – “बहलोल ने भेजा है।”
कांचन उसे शक की निगाह से देखा। बहलोल किसी को भेजने वाला शख्स न था। औरत जल्दी से बोली – “बहलोल पर पुलिस ने नजर रखा है। वह शक के दायरे में है। इसलिए उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा। जल्दी से लिफाफा लाओ।”
कांचन सोच में पड़ गया। उसके सोच भरे चेहरे को देख वह फिर बोली - “क्या सोच रहे हो, जल्द करो। बहलोल के अलावा और कौन मुझे तुम्हारे पास भेज सकता है? उसके बताए बगैर इतना सीक्रेट बात और मुझे किससे पता लगे?”
अब कांचन धीरे से पूछा – “तुम्हारे बारे में बहलोल ने कभी बताया नहीं। क्या नाम है तुम्हारा?”
“तुम भी बड़े बेवकूफ हो। कोई अपने मुर्गी के बारे में बताता है क्या? मैं रोंगिनी हूँ।” वह अदा से हँसते हुए बोली।
“फिर भी। कोई सुराग तो होगा। कोई ऐसी बात कि तुम मुझे यकीन दिला सको।” कांचन के शक ने फिर रूप लिया।
“कहीं तुम्हें वापस वतन न लौटना पड़े। तुम्हारे और बहलोल के आका का बंदोबस्त बड़ा जबर्दस्त है।” वह धीरे मगर बड़े साफ आवाज मेँ बोली।
कांचन के चेहरे से डर साफ झलका। वह लिफाफा निकालकर काउंटर पर रखा। औरत ने लिफाफा उठाया। वह मुस्कुराई, और पलट गई। कुछ दूर जाने के बाद फिर लौट आई। कांचन ने सवालिया निगाह से देखा, मानो कहना चाहता हो, अब क्या?
वह अपने ब्लाउज के अंदर हाथ डाल एक प्लास्टिक निकाली। फिर उससे एक खिल्ली पान निकालकर दी, और बोली – “तुम बहुत अच्छे हो। बहलोल से मत कहना, किसी दिन अकेले में आऊँगी। लो पान खाओ।” फिर वह बड़े अदा से आँख मारी। अब ललचाई नजर उसके जिस्म पर डाल कांचन मुस्कुराया। फिर पान ले मुँह में डाल चबाने लगा। वह जानती थी, कांचन दिल का बड़ा कच्चा था। मगर वह उसे पहचान ही न पाया था, दस साल का वक्फ़ा कुछ कम तो नहीं होता। उसने फिर एक मादक नजर डाली और एक फ्लाइंग किस उछाली। फिर अचानक अंधेरे में गायब हो गई।
कांचन भी दुकान बंद कर दिया। खुशी से उस औरत के बारे में सोचते हुए वह भी धीरे धीरे सड़क पर चलने लगा। कोई एक किलोमीटर दूर उसका घर था। आगे एक अंधेरा गली था। उस गली के अंत में ही उसका घर था। अचानक उसका गला तेजी से जलने लगा। वह खड़ा न रह सका और रास्ते में ही गला पकड़ बैठ गया। उसके पसीने निकल आए। वह छटपटने लगा। पान के पीक के साथ खून निकलने लगे और कपड़ों पर फैलने लगे। उस सुनसान सड़क में कोई न था। कुछ देर बाद दम तोड़ दिया।
अंधेरे से वह औरत निकल आई। वह एक नजर कांचन को देखी। फिर वह संतुष्ट हो बस्ती की तरफ कदम बढ़ाने लगी। बस्ती में एक कमरा का एक मकान था। वह उसमें झट अंदर घुस गई। उसने तुरत-फुरत अपने कपड़े बदले। जींस और टॉप। जूड़े कसकर बांधे। एक बड़ा सा चश्मा आँखों में लगाया। अब वह बिलकुल बदल चुकी थी। किसी स्कालर की तरह लग रही थी। कपड़े, लिफाफा सब उसने अपने ट्रॉली बैग में समेटा। स्पोर्ट्स शूज पहने और एक नजर कमरे को देख निकल पड़ी। अब यहाँ कोई काम न था।
आगे कोई सवा किलोमीटर पर स्टेशन था। वह तेज कदमों से चलते हुए प्लैटफ़ार्म पर आ गई। सही वक्त था। लोकल आने वाला था। प्लैटफ़ार्म पर बस कुछ ही लोग थे। वह लेडीज कम्पार्टमेंट पर चढ़ गई। उसे जोसेफ से मिलना था। उससे भी कुछ हिसाब था और आज ही चुकता करना था। उसने फैसला कर लिया। स्टेशन आ चुकी थी। वह उतर गई। उसने क्लॉक रूम में बैग रख दिया। फिर स्टेशन से निकल आई।
फ्लैट की घंटी बजी। जोसेफ ने दरवाजा खोला।
“मलैका! वॉट अ सर्प्राइज़?” जोसेफ लगभग चिल्लाया।
“आई नीड जस्ट नीट वोदका। वेरी टायर्ड।” वह बोली।
“ओह श्योर। बट किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं?” वह वोदका उड़ेल उसे गिलास पकड़ाया। फिर अपने लिए बनाने लगा।
वह एक साँस में पी गई। फिर बोली - “ बेबी, आई एएम ऑल्वेज़ सीक्रेट। वरी नॉट। न देखा, न देखेगा। नाउ अनादर स्माल रिक्वेस्ट। आई एएम वेरी हंगरी टू। वोन्ट यू मेक यौर स्पेशल ऑमलेट फॉर यौर स्पेशल फ्रेंड?”
जोसेफ कुछ अनिच्छुक सा दिखा। वह जल्द ही अपने सीने को फुलाती हुई बोली – “बेबी, आई हैव कम विथ ए प्लान टु स्पेंड नाइट विथ यू। परहेप्स यू विश नॉट। ओके, थैंक्स फॉर योर ड्रिंक। गुड नाइट।”
“हे, वेट, वेट। यार, मैंने कब मना किया। बस ड्रिंक तो पूरा कर लेने दे।” जोसेफ हड्बड़ाकर बोला।
“बस एक ड्रिंक? अभी तो सारी बोतल और सारी रात भी पड़ी है। कहकर वह फिर खुद ही बोतल से वोदका उड़ेलने लगी। जोसेफ ने जल्द ही अपना जाम खाली किया और गिलास बढ़ा दिया। फिर बोला – “दिस टाइम पटियाला, एक्सट्रा लार्ज।” वह मुस्कुराई। जोसेफ किचेन की ओर बढ़ गया।
जोसेफ दस मिनट में ऑमलेट बनाकर ले आया। वह उसे गिलास पकड़ा दी और कामुकता से बोली – “लार्ज पटियाला शुड ऑनर्ड विथ लार्ज शिप।”
“श्योर।” वह एक बड़ा सा घूँट लिया। अपना जीभ चटकाया। फिर कुछ नट्स मुँह में डाले। अंत में पालकी मार अपने बिस्तर पर बैठ गया।
वह धीरे-धीरे वोदका शिप करने लगा। नट्स खाने लगा। यही उसका पसंदीदा स्टाइल था। मगर कुछ देर बाद उसके आँखेँ मूँदने लगे।
वह उसे गौर से देखने लगी। कुछ देर और गौर करने के बाद वह धीरे मगर स्पष्ट और दृढ़ स्वर में बोली – “कांचन इज नो मोर। बहलोल टू।”
“वॉट?” जोसेफ अपने आँखें खोल पूछा।
“जब्बार, आई सेड, कांचन इज नो मोर।”
“ए! हाऊ डु यू नो कांचन एंड हु इज जब्बार?” वह संधिग्ध हो पूछा।
“तुम्हें वह तेरह साल की लड़की याद है? जो तुम्हारे पड़ोस में रहती थी। जिसका तुम तीनों ने मिलकर जिंदगी बर्बाद किया था। बस एक ही रात में उस लड़की की जिंदगी बदल दी थी तुमने। एक उमस भरी गर्मी की रात वह अकेली अपने छत पर सोई थी। ऐसा बड़ा नैचुरल था। मगर तुम तीनों ने तो इस नैचुरल लाईफ को अपने हक में ले लिया। तुम तीनों के लिए छत फाँदना क्या मुश्किल था। छत के दरवाजे को बंद कर अपनी मर्दानगी की नुमाईश कर दी तुम तीनों ने बारी बारी से, वह भी एक किशोरी से जो अभी ठीक से इसका मतलब भी न समझती हो। उसका परिवार छूट गया, स्कूल छूट गया, शहर छूट गया, मुल्क भी छूट गया।”
“कौन हो तुम?” वह हड़बड़ाकर बिस्तर पर बैठ गया।
“उस छोटे से शहर जहाँ तुमने बचपन बिताया, तुमसे पाँच-सात साल छोटी उस पड़ोसी लड़की को भूलना तुम्हारे लिए बड़ा आसान है। आखिर लड़कियों के इज्जत से खेलना आम बात है तुम्हारे लिए। जाने और कितने ऐसों के तुमने दुर्गति किए होंगे।”
“कौन? रोंगिनी?”
“वही। शुक्र है तुम्हें याद आया। इच्छामति में बहुत पानी बह गया। तुम यहाँ आ गए, नाम बदल लिए, क्रॉस पहन लिए। एक मॉल में स्टोर कीपर की नौकरी करने लगे। तुम्हारा दोस्त यहाँ आ कांचन कपड़ा का दुकान चलाने लगा। बहलोल भी इधर आ ट्रांसपोर्ट का कारोबार खोल लिया। मगर तीनों ड्रग पैडलिंग के धंधे में जुड़ गए। मजबूरी थी, वरना मुल्कबदली का राज उजागर हो जाता। रोंगिनी भी तुम्हारी तरह मुल्क छोड़ दी, नाम बदल ली। मलैका बन गई।”
“तुम चाहती क्या हो?” वह सशंकित हो पूछा।
“कुछ बात बताना चाहती हूँ। जानते हो, रोंगिनी के परिवार का क्या हुआ? सालों बाद खबर लगी। परिवार उजड़ गया। दीदी ने आवाज उठाना चाहा, उसका रोड में ऐक्सीडेंट हो गया। नहीं, कर दिया गया। भाई अचानक एक दिन लापता हो गया। गुमशुदा के फेहरिस्त में शामिल हो गया। माँ-बाप इसी गम में गुजर गए। हँसता-खेलता एक परिवार बस यूं ही खत्म हो गया।”
“बेबी यू आर रांगली इन्फॉर्म्ड। लीव इट। लेट्स एंजॉय टुनाईट।” वह बात को बदलने के लिए बोला। मगर उसके सर भारी हो रहे थे।
उसके बात को नजर अंदाज कर वह बोली – “जानना नहीं चाहोगे कांचन और बहलोल का क्या हुआ? आखिर तुम्हारे दोस्त थे। न जाने कितने काले रात के साथी थे।”
अब जोसेफ से रहा न गया। वह झटके से उठने के कोशिश में लड़खड़ाया। फिर अपने सर पकड़ लिया। उसकी आँखें मूँद रही थी। वह फिर बोली - “कांचन के पान का शौख अब भी बरकरार था। मैंने उसे पान खिला दिया। यह उसका आखरी पान था। बेचारा कुछ जान भी न पाया।”
“और बहलोल?” वह जैसे सम्मोहन में ही पूछ बैठा।
“उसे मैंने अपनी असलियत ही बताई और एक मजबूर लड़की जान वह मुझे मुर्गी समझने लगा। मैंने उसे खूब हवा दी। वह आखिर मुझपर भरोसा करने लगा। मगर वह गुड़ाखू घिसने के गंवई आदत से अब भी बाज न आ पाया था । आखिर वही उसके दुनिया से मुक्ति का वजह बन गया। आज सवेरे वह आखरी बार गुड़ाखू घिसा। वह भी तो अपने मौत का अंदाजा भी न लगा पाया।” वह मुस्कुराती हुई बोली।
“तुम क्या मुझे भी ........?” वह और आगे कह न पाया। पलंग के किनारे सहारा ले वह अधलेटा सा रहा।
वह फिर मुस्कुराई। फिर बोली – “बस चंद मिनट। इसके बाद तुम गहरी नींद में होगे, सदा के लिए। लार्ज पटियाला ने बीस नींद की गोली तुम्हारे जिस्म में उतार दिये। यह तो काफी है।”
“ओह नहीं।” कहकर वह धीरे से लुढ़क गया।
वह कहने लगी – “दुनिया तुम्हें सजा नहीं देती। मगर मुझे तो देना ही था। यह मेरी जिंदगी का सवाल था। जो खोये थे, मैंने खोए थे। हिसाब भी मैंने ही बराबर करने थे। मैंने दस साल लगाए तुम लोगों को खोजने में। अब मैं चैन की जिंदगी जीयूंगी। एक नई जिंदगी।” वह फिर आराम से ऑमलेट खाने लगी।
उसने ऑमलेट खत्म किए। वह जोसेफ के वार्डरोब से एक बुर्का निकली, उसे पहले ही पता था। वह कई बार इसका इस्तेमाल कर चुकी थी। फिर वह गिलासों को धो आराम से सारे सबूतों, फिंगर प्रिंट्स वगैरह मिटाये। वह एक नजर आराम से सोये जोसेफ को देखी, फिर बोली – “ऑमलेट वाकई बहुत बढ़िया था। शुक्रिया।” फिर वह कमरे से निकल आई।
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मालविका मजूमदार ने कहानी को पढ़ा। फिर वह बोली – “कहानी अच्छी है, पर कुछ कमी है।”
पलाश सेन ने चौंककर सर उठाया। सवालिया निगाह से देखा। वह एक उभरता हुआ लेखक था। मालविका मजूमदार को कहानी सुनाने आया था। मालविका मजूमदार एक कॉलेज की लेक्चरर थी। पलाश सेन उसी कॉलेज का पास आउट था।
“रोंगिनी कैसे इस पार आई? क्या किसी एजेंट का सहायता वह न ली थी? फिर तो उसको भी उसी ड्रग के खेल में शामिल हो जाना था।” मालविका मजूमदार पूछी।
“क्या पता? शायद उसने दूसरे तरीके से कीमत चुकाया हो।” पलाश सेन ने अपनी बात रखी।
“मैं मदद करूँ?” मालविका धीरे से पूछी।
पलाश गहरे नजर से देखने लगा।
“रोंगिनी इज्जत खोने के बाद इच्छामति में कूद गई थी। बहते बहते जिस घाट में जा लगी वह हिन्दुस्तान का था। बेचारी को मौत ने भी लौटा दिया था। आखिर उसे जीना था।” वह भारी आवाज में बोली।
हर एक इंसान कई चेहरा लिए होता है। उसका भी चाँद के अनदिखा हिस्सा की तरह कुछ हिस्सा अनदिखा ही रह जाता है। कभी बारिस की बूंदें मांगती गर्म उमस के दिन की तरह सूने दिल में कितने राज छुपे होते हैं, कभी उजागर भी हो जाता है। कुछ बारिस हो भी जाती है। कोई तार किसी ने छेड़ दिया तो सुर निकल भी आता है।

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