“तुम आओ न”
गया फागुन
फिर भी है बसंत अब भी कुछ शेष
महुआ है महकाया, पलाश भी है दहकाया
फिर भी है बसंत अब भी कुछ शेष
महुआ है महकाया, पलाश भी है दहकाया
हरियाली की दूत बन
तुम आओ न
तुम आओ न
तुम्हें याद करते हुए जाने कब भोर हुआ
दीवार के उस पार आम के पत्तियों से एक कोयल है पुकारा
प्यार का मारा, बेचारा
क्यों होती है मुझे तुमसे हमदर्दी कोयल !
दीवार के उस पार आम के पत्तियों से एक कोयल है पुकारा
प्यार का मारा, बेचारा
क्यों होती है मुझे तुमसे हमदर्दी कोयल !
हवा में है अब भी नमी
तुम आओ न
तुम आओ न
जाने कब से चाय की खाली प्याली ले बैठा हूँ
भूलकर खाली प्याली होठों से लगाया, व्याकूल कोयल फिर कूका
मुझपर हँसती गुजर गई एक ट्रेन सीटी बजाती दूर से
मेरा अतीत वर्तमान एक हो आया
भूलकर खाली प्याली होठों से लगाया, व्याकूल कोयल फिर कूका
मुझपर हँसती गुजर गई एक ट्रेन सीटी बजाती दूर से
मेरा अतीत वर्तमान एक हो आया
भोर का सपना सच होकर
तुम आओ न
तुम आओ न
क्या पता इस ट्रेन में एक सीट तुम्हारा भी हो
कदमों की आहट, दस्तक अब कुछ देर बाद मुझे सुनना हो
ठहरो कोयल, हम एक तान में सुर मिलाएंगे
एक साथ ही गाएँगे
कदमों की आहट, दस्तक अब कुछ देर बाद मुझे सुनना हो
ठहरो कोयल, हम एक तान में सुर मिलाएंगे
एक साथ ही गाएँगे
जो है अब भी बसंत कुछ शेष
तुम आओ न
तुम आओ न
© Gourang
26/03/2017
26/03/2017
कभी थमकर अपने दिल के आहट को सुन लेना अच्छा होता है। पग पग चलती जिंदगी जाने कौन सी गीत गाती हो, इसका खबर लेना होता है। बसंत तो आते है, चले भी जाते हैं मगर जो निशान छोड़ जाते हैं, मन वही गुनगुनाने लगता है।
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