Friday, March 3, 2017

अंगूठी

अंगूठी
(सूरजमुखी)
संग्राम केशरी जितना अमीर था उतना ही जिद्दी भी था। उसके अंदर बड़े बाप के बिगड़े औलाद वाले सभी गुण थे। जितना खामखयाली था उतना ही जिद्दी था और उतना ही मनमौजी भी। चालीस साल का गैर शादीशुदा शख्स कोई कारोबार न करता था, न जरूरत थी। पुश्तैनी जायदाद का इकलौता मालिक इस फ़ानी दुनिया में रिशतेदारों से भी बिलकुल मरहूम था। वालदैन के भी गुजरे अरसा हो गया था। एक सुबह अचानक वह एफ आई आर दर्ज कराया कि किसी ने रात उसकी बेसकीमती अंगूठी चुराने की कोशिश की थी, मगर वह चुरा न पाया और सवेरे कमरे में पलंग के परे अंगूठी मिली। अब इसका खोजबीन हो कि किसने यह हरकत की।
एक हल्के दर्जे का एफ आई आर था। ऐसे एफ आई आर को अमूमन गंभीरता से लेने की स्थिति नहीं होती। अक्सर, मामला अंदरूनी ही होता है। बाद में एफ आई आर कर्ता खुद ही मामले में आगे नहीं बढ़ते। पर संग्राम केशरी का अमीर होना और कुछ आला अफसरान के साथ ताल्लुकात होने के वजह से इस पर दिलासा देने के गरज से ही सूरजमुखी को तहक़ीक़ात के लिए तुरत-फुरत भेजा गया।
सूरजमुखी बगैर यूनिफॉर्म ही गई। उसका ख्याल था, घरेलू मामले में आम इंसान की तरह पेश आना इन्स्वेस्टिगेशन में मददगार होता है। वर्दी में लोग उस कदर खुलते नहीं। दुआ सलमात के बाद आखिर सूरजमुखी मुद्दे पर आ गई और फिर से सारी घटना की जानकारी ली। वही दुहराये हुए वाकया मिले। फिर सूरजमुखी ने मकान देखने के मंशा जताए। यह एक तीन मंज़िला फ्लैट कान्सैप्ट वाला मकान था जिसके तीसरे मंजिल में आधे में कमरे बने थे और आधे में खुला छत था। आखिर में संग्राम केशरी उसे दुमंजिले के उस कमरे में ले आया जहाँ वह रहता था, वहीं एक बड़ी सी टेरेस भी थी। एक बड़ी सी बेल्जियम ग्लास वाली खिड़की थी जिसके पल्ले स्लाइडिंग वाले थे। काफी देर कमरे का मुआयना करने के बाद सूरजमुखी ने अंगूठी देखने की मंशा जताई। संग्राम केशरी अपने हाथ के उँगली से अंगूठी निकाल कर दिखाया। अंगूठी देखते ही सूरजमुखी के होठ गोल हो गए।
सूरजमुखी बोली – “बहुत कीमती अंगूठी है।”
“पन्ना है। खास मध्यप्रदेश के पन्ना के खान से कोई सौ साल पहले निकाला हुआ। खानदानी है, मेरे परदादा ने कभी पहना था।” केशरी गर्व से बोला।
“अब इसे आपके बाद पहनने वाला तो कोई न हुआ।” अंगूठी को फिर एक आँख से रोशनी में गौर से देखते हुए सूरजमुखी बोली।
पहले तो केशरी बात के तह में न घुस पाया। फिर कुछ देर बाद समझने के बाद बोला – “कोई शादी के लायक ही न मिली।”
सूरजमुखी अंगूठी से नजर हटाकर एक नजर फिर संग्राम केशरी को देखी। तंदूरस्त ही था पर आँखें शराबी होने के चुगली करते थे। मन ही मन सोची, मिली भी तो शायद टिक न पायी होगी। फिर बात को बदलकर पूछी - “घर में और कौन कौन हैं?”
“इकलौता इन्सान हूँ। इसके अलावा सरोजिनी है, रसोई करती है और रोजा है जो जनरल मेड है।” केशरी ने कहा।
कुछ सोचती फिर सूरजमुखी पूछी – “कोई मेल पर्सन नहीं?”
“सीधे तौर पर नहीं। नीचे गैरज के बगल में एक खुला सा जगह है वहाँ एक धोबी जगमोहन रहता है। अपना दुकान चलाता है। वह रहने के पैसे नहीं देता पर ऐवज में घर के कपड़ों के धुलाई, प्रेस करता है। गार्ड का काम भी उसी से हो लेता है।” संग्राम केशरी बोला।
सूरजमुखी को ख्याल आया, लगभग संग्राम केशरी के ही उम्र का एक आदमी एंट्रांस के आहते में कपड़े आयरन कर रहा था। वह पूछी – “उसका परिवार यहाँ रहता है?”
“जगमोहन शादीशुदा नहीं है। मेरा ख्याल है रोजा पर दिल रखता है। मगर रोजा ईसाई होने के कारण बात शायद आगे बढ़ी नहीं।” संग्राम केशरी बोला।
“किसने बताया, जहमोहन ने?” सरलता से सूरजमुखी ने पूछ लिया।
“न जगमोहन ने, न रोजा ने। पर बात हवा में तैर ही जाती है।”
“अब मैं सभी लोगों से मिलना चाहूंगी।” सूरजमुखी बोली।
“अभी लीजिये, मैं सबको बुलाये देता हूँ।” कहकर केशरी एक बेल बजाने को हुआ, पर सूरजमुखी ने रोक दिया।
वह बोली – “रहने दीजिये। मैं खुद ही मिल लूँगी। आप बस अपना काम कीजिये और कोई पूछे तो मुझे भतीजी कहकर परिचय दीजिये।”
केशरी चौंका, फिर मुस्कुराया। आखिर में वह हँसता हुआ पूछा – “कहीं जायदाद में हिस्सेदारी का इरादा तो नहीं है?”
“नहीं, बिल्कुल नहीं। हिस्सेदारों को खोजने का इरादा है।” सूरजमुखी बोली और कमरे से निकल आई।
तीसरे मंजिल पर ही दोनों के अपने अपने कमरे थे। रोजा कोई चालीस के उम्र की औरत थी। कुछ दबे रंगत वाली पर स्वास्थ्य बहुत ही अच्छा था। अगर खुद ही अपनी उम्र सूरजमुखी को न बताती तो अंदाजा मुश्किल से बत्तीस-तैंतीस का ही लगता। रिजर्व नेचर की और संग्राम केशरी से कुछ नाखुश ही दिखी। सरोजिनी एक ऑर्फ़न थी मगर पढ़ी लिखी थी। परवरीश एक अनाथालय में हुआ था मगर मेट्रिक के बाद किस्मत ने संग्राम केशरी के मुलाजमात में ला पटका। उम्र भी कोई तीस साल लगती थी। चटक रंग, देह के गठन से ही किसी खानदानी परिवार की निशानी लगती थी। सूरजमुखी मन ही मन सोची जाने क्या इतिहास रहा होगा।
सूरजमुखी ने अपनी डायरी में पंचनामा दर्ज किया। वापस लौट आई। वह सारे रास्ते सोचती रही। कुछ करने को मन होता पर दुविधा में होती। आखिर इसी उघेड़बुन में सूरजमुखी हेडक्वाटर लौट रिपोर्ट पेश कर दी।
कोई महीना भर बीत गए। अचानक सूरजमुखी को फिर तलब किया गया और बताया गया कि किसी ने पिछली रात सोते वक्त संग्राम केशरी के मुँह में स्याही लगा दी। संग्राम केशरी काफी गुस्से में फिर कम्पलेन लॉज किया। सूरजमुखी पहले कुछ आवक हुई फिर एक लंबी साँस ली। उसे फिर जा कर तहक़ीक़ात करना ही था।
इस बार वह सीधे रसोई में सरोजिनी से मिली। वह आटा गूँथ रही थी। उसके हाथ में सने आटे लगे हुए थे। वह धीरे से पूछी – “चाचाजी रात कितने बजे तक शराब पीते हैं?”
पहले तो सरोजिनी घबराई फिर मुँह सिल ली। कुछ देर तक इंतजार करने के बाद भी आखिर जब कोई आवाज नहीं आया, सूरजमुखी कुछ कड़ा होकर बोली - “जब पीकर टुन्न होते है तो होश रहता है या नहीं?”
तभी पीछे से आवाज आई – “तुम्हारा चाचा घोखाबाज है। समझाओ इस नादान को। झूठा सब्जबाग दिखाकर जिंदगी बर्बाद कर देगा।” यह रोजा थी।
सूरजमुखी मुस्कुराई और बोली – “जगमोहन तो तुमपर मरता है।”
“गरीब है पर केशरी की तरह नहीं, भरोसेमंद है।” रोजा बोली। आज वह खुश दिख रही थी।
“कब शादी कर रही हो?” सूरजमुखी ने पूछा।
“हमने रजिस्ट्री मैरिज कर ली। आज शाम हम यहाँ से चले जाएंगे।” वह बोली।
“बधाई हो। जाते जाते यह तो बता जाओ, तुमने कालिख क्यों लगाई?” सूरजमुखी कुछ गहरे भेदते बोली।
दोनों चौंक गए। फिर रोजा आँखों को गहरी कर बोली – “मेरा शुक्रगुजार मानो, बड़ी छोटी सजा दी मैंने, बस मन की तसल्ली के लिए। वरना तुम्हारे चाचा कोर्ट में घसीटने के काबिल हैं।” कुछ देर सन्नाटा रहा फिर वह उत्सुकता से पूछी – “तुम्हें कैसे मालूम?”
सूरजमुखी अब गहरी मुस्कुराई और बोली – “मार्कर पेन की स्याही की एक खास महक होती है। महक अब भी हल्की सी तारी है। आखिर कल रात की ही तो बात है। फिर ये तुम्हारे ओढनी के पल्लू में जो दाग हैं ये उसी के है जो तुमने पोछे हें।”
रोजा हड़बड़ाकर अपने पल्लू देखी।
सूरजमुखी घूमकर सरोजिनी की ओर देखी और बोली – “देखो एक बात सच-सच बताना, तुमने अंगूठी चोरी की तो फिर वापस पलंग के पास फेका क्यों?”
सरोजिनी चौंककर सूरजमुखी को देखी फिर गुस्से से बोली – “मैंने चोरी नहीं किया, उसने मुझे खुद पहनाया था।”
सूरजमुखी के होठ गोल हो गए। वह कुछ सोचती हुई बोली – “और फिर जब सवेरे नशा उतरा तो वह अंगूठी उंगली में न पा चिल्लाने लगा तो तुम डरकर पलंग के पास फेंक आई।”
सरोजिनी का मुँह खुला रह गया। वह हैरानी से सूरजमुखी को देखने लगी। सूरजमुखी फिर बोली – “इसमें हैरान होने वाली कोई बात नहीं है। उस दिन अंगूठी में मेंने कुछ गूँथे आटे देखे थे। आज तुम्हें आटा गूँथते देख सारा कुछ साफ हो गया। शायद यह शादी के वादे के तौर पर तुम्हें पहनाई गई और तब ही तुमने उस रात के लिए हरी झंडी दिखाई। फिर तुम उस अंगूठी को पहने ही रही और काम करती रही, आखिर प्यार की निशानी थी।” सरोजिनी का मुँह लटक गया। वह सर नीचा कर बैठी रही।
कुछ देर बाद सूरजमुखी फिर बोली – “शादी करोगी? चाची बनोगी?” सरोजिनी दुगुने हैरान हो सर उठाकर सूरजमुखी को देखने लगी। उसके आँखों में चमक थी।
तभी रोजा बोली – “इस छलावे में मत रहना। वह कभी एक अनाथ लड़की से शादी न करेगा। उम्र में तुमसे बड़ी होने के कारण मैं तुम्हें यह सलाह दे रही हूँ।”
सूरजमुखी बोली – “और अगर मैं उसे यकीन दिला दूँ कि तुम्हारा अतीत खोज लिया गया है, तुम ऊंचे खानदान वाली हो, तुम्हारी एक मौसी भी है, तो क्या वह तुमसे शादी करने के लिए तैयार न हो जाएगा?”
“क्या सच?” पहली बार सरोजिनी मुस्कुराई। वह आशा भरे नजरों से सूरजमुखी को देखी।
“हाँ, में जैसा कहूँ, वैसा ही करना। बस बाकी मुझपर छोड़ दो।” सूरजमुखी बोली और निकल आई। जाते जाते सोचने लगी, सच औरत के दिल की खबर पाना बहुत मुश्किल है। कौन किसमें अपनी जिंदगी देख पाती है, भगवान ही जानते हैं। उसे बरबस सूरज याद आया।
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मीनाक्षी और अनुपम गणेश संग्राम केशरी के घर के दरवाजे पास आ खड़े हुए। मीनाक्षी कुछ नर्वस सी अनुपम गणेश को देख बोली – “आंटी, आप संभाल लेंगी न!”
अनुपम गणेश घूरकर आँखें तरेर बोली – “तूने सास-बहू के झगड़े के सीरियल नहीं देखे? सौ घंटे से ज्यादा का कोर्स किया है मैंने। देख री जसूसिन मैं कैसे मछली को चारा फँसाती हूँ।” फिर उसने कॉल बेल पर उंगली रख दी।
संग्राम केशरी ने खुद ही दरवाजा खोलना था, रोजा और जगमोहन काम छोड़ चुके थे। सरोजिनी बाहर गई थी। वही हुआ।
अनुपम गणेश शुरू हो गई – “तू केशरी है, संग्राम केशरी?”
हैरत से केशरी बोला – “हाँ, मगर आपलोग कौन?”
“हम तो बताएँगे, पहले मेरी भांजी सरोजिनी को बुलाओ।” अनुपम गणेश बोली। और संग्राम केशरी को धकेल सीधे अंदर आ सोफ़ा पर बैठ गई। मीनाक्षी ने भी अनुसरण किया।
‘भांजी? सरोजिनी तो ऑर्फ़न है!!” सहसा संग्राम केशरी बोला।
“खबरदार, आगे उसे ऑर्फ़न न कहना। उसकी मौसी अभी जिंदा है।”
“मौसी?”
“तू शराबी है या मंदबुद्धि? समझ नहीं आंदी मेरी गल? पहले सरोजिनी को हाजर कर।”
“आपकी कोई बात मेरे समझ में नहीं आ रही। सोरोजिनी मार्केट गई है, आती ही होगी।” संग्राम केशरी कुछ नाराजगी दिखाकर अनुपम गणेश से बोली।
मीनाक्षी धीरे से बोली – “मैं बताती हूँ। मैं एक पी डी हूँ। कोई साल भर पहले इन्होने हमसे अपनी बहन की बेटी सरोजिनी को खोजने की गुजारिश की, जो सत्ताईस-अट्ठाईस साल पहले हावड़ा स्टेशन से गुम हो गई थी। साल भर के मेहनत के बाद आखिर वो हमें आपके घर में मिली।”
संग्राम केशरी अवाक सा देखने लगा।
“ऐ की दीदे फाड़ देख रहा है? कुछ समझ आई या फेर तेरे रोशनदान में कुछ नया हवा भरें हम?” अनुपम गणेश ने कहा कि अचानक उसकी मोबाईल बजने लगी। बड़े स्टाइल से फोन रिसीव कर बोली – “हल्लो।”
कुछ सुनी, फिर मिजाज बिगाड़कर बोली – “एक एड्रेस नहीं खोज सकदी, तैनु वकील किसने बनाया? गली बिच चौथा घर।” केशरी की ओर देख फिर बोली – “तूने सुना नहीं? मेहमानों से पेश आने का कोई तरिक्का मालूम है या नहीं? जाकर देख कौन आया?”
केशरी और हकबकाया। वह समझ न पा रहा था क्या करे। अनुपम गणेश जी ने फिर घुड़की लगाया – “तेरी अक्लदाढ़ उगी या नहीं?” डांट खाकर केशरी हड़बड़ाकर उठा और दरवाजे की तरफ गया। मीनाक्षी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाई।
कुछ देर बाद केशरी शीलू को लेकर ड्राईंग रूम में आया जो एक मोटी फ्रेम वाली चश्मा पहन वकील के गेट-अप में नजर आई। दोनों सोफ़ा में बैठ गए। शीलू केशरी को देख बोली – “सीधे मुद्दे पर आती हूँ। मेरे मुवक्किल ने आप पर मुक़द्दमा दायर करने का इरादा किया है। इल्जाम है कि आपने उनके भांजी सरोजिनी से शादी का झूठा वादा कर प्यार हासिल किया है। आपका क्या कहना है?”
बम पर बम गिरे जा रहे थे। केशरी और घबराया। वह समझ न पाया, क्या कहे। शीलू फिर टोकी – “कुछ नहीं कहना?”
“ये झूठा वादा की बात किसने कहा?” आखिर केशरी के बोल फूटे।
“जाहिर है, सरोजिनी ने।”
“मुझे यकीन नहीं।” केशरी कुछ झल्लाकर बोला।
“अब यकीन क्या बाप बनकर होगा? लक्ख समझाई, अब पहचान मिल गया तू खानदानी कुड़ी है, पल्ला झाड ले। पर माने तब न! इश्क दी मरीज, कहदी है दिल में बस गया।” आँखें मटकाकर अनुपम गणेश बोली।
“आखिर आप चाहती क्या हैं?” हारकर केशरी बोला।
“देखिये, मेरे मुवक्किल चाहती हैं कि आप जल्द-अज-जल्द सरोजिनी से शादी कर उन्हें पत्नी का दर्जा दें या फिर अदालती कार्रवाई का सामना करें। कहना न होगा, हम अदालत में खूब शोर तो करेंगे ही, मामला जरूरत पड़ने पर आगे भी ले जाएंगे।” शीलू ने एक एक शब्द तौल तौल कर कहा।
तभी फिर बेल बजा। इस बार मीनाक्षी जाकर दरवाजा खोली। लगभग दौड़कर ही सरोजिनी आई और “मासी” पुकार कर अनुपम गणेश के गले लग गई। कुछ देर ऐसा ही चला।
अनुपम गणेश सरोजिनी से बोली – “तूने मिलवाया नहीं, मैं खुद ही मिलने आ गई। देख अब भी एक बार सोच ले। फेर जो फैसला ले, तेरी मासी हमेशा तेरे साथ है।”
सब्जी की थैली किनारे रख सरोजिनी बोली – “मासी, केशरी बाबू दिल के बुरे नहीं हैं। बस थोड़े पीते है और बकहते हैं। इसका वजह भी वही है, प्यार के तरसे हैं। बचपन से इन्हें प्यार न मिला। दौलतमंद माँ-बाप ने दौलत तो दिया पर प्यार से ही मरहूम रखा। मैं इन्हें इतना प्यार दूँगी कि सारी कमी दूर हो जाय।”
कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर सरोजिनी आकर केशरी के बगल में बैठ गई। केशरी की हथेली अपने हथेली में ले आँखों से आँखें मिला बोली – “अमूमन लड़के ही लड़कियों से ये कहते हैं। पर मुझे मालूम है, लोगों के बीच यह कहने में आप शायद वर्षों लगा देंगे।”
“क्या?” हलकाते हुए केशरी पूछा। वह इस बदली हुई सरोजिनी को पा आश्चर्य हो रहा था।
“मुझे शादी करेंगे।” कुछ लजाती हुई ही सरोजिनी बोली।
“क्या?” केशरी के मुँह खुले रह गए। उसके ख्याल से लड़कियां तो गाय ही होती हैं, अब तक सरोजिनी ने भी यही साबित किया था। मगर ये कुछ और ही निकली।
“मासी चाहती हैं, अब मुझे अपने मिले नए पहचान को सार्थक करना चाहिए। वह तो में जरूर करूंगी। पर उसके पहले अपने दिल की भी तो सुन लूँ। आपके जज़्बातों की भी खबर ले लूँ।”
केशरी के पास हैरान होने के अलावा और क्या था। उसकी एक नई सरोजिनी से मुलाक़ात हुई। तभी उसने सुना, अनुपम जी बोली – “वक्त बरबाद न कर। फैसला कर। हाँ कर, या न कर।”
अब केशरी सच में मुस्कुराया और सरोजिनी को देख बोला – “हाँ, मैं तुमसे शादी करूंगा।” सबने ताली बजाई। मीनाक्षी मुस्कुराते हुए बोली – “बधाई हो।”
शीलू भी बोली – “मेरी फीस तो मारी गई, फिर भी बधाई हो।” फिर कसकर एक ठहाका लगाई।
अनुपम गणेश उठकर आई, केशरी के सर पर हाथ फेरा और एक सौ एक रुपये केशरी के हथेली पर रख बोली – “ऐ ले रख शगुन के तौर पर।” फिर मीनाक्षी को देख बोली – “देख क्या रही है, फोटो तो खींच।”
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पार्टी चल रही थी। संग्राम केशरी और सरोजिनी वर-वधू के रूप में बैठे थे। मेहमान आ रहे थे। सूरजमुखी ने फ्लावर बुके पकड़ाया और बधाइयाँ दी। केशरी और सरोजीनी दोनों मुस्कुराये। उसने एक लिफाफा गिफ्ट के तौर पर सरोजिनी को थमाया।
फिर सूरजमुखी केशरी के कान के पास मुँह ले जाकर फुसफुसाते बोली – “हमने पता लगा लिया, उंगली से अंगूठी कैसे निकली थी और किसने आपके मुँह पर कालिख पोते।”
केशरी सकपकाया। एक चोर नजर सरोजिनी को देखा और बोला – “अब इसमें क्या रखा है, मैं नई जिंदगी शुरू कर चुका हूँ।
सूरजमुखी भी गहरी मुस्कुराई। फिर आगे निकल बफेट एरिया में गई। एक गिलास में ऑरेंज जूस भरी। अभी एक चुस्की ली ही थी कि शीलू करीब आई। दोनों ने हौले से एक दूसरे का अभिवादन किया। फिर सूरजमुखी बोली – “मीनाक्षी से सारा ड्रामा सुनी। आंटी ने तो गज़ब कर दिया। सरोजिनी ने भी। मगर तुमने वकील के गेट-अप में बहुत बड़ा रिस्क ले लिया था। अगर केशरी सचमुच तैयार न होता तो? तुम फँस न जाती? अदालती कार्रवाई न होने पर पोल खुल न जाता?”
“नहीं रे बन्नो। शीलू कच्ची गोलियाँ नहीं खेलती। अगर केशरी मुकरता तो वर्षों पुरानी की गई लॉं की डिग्री काम ही आती। अदालती कार्रवाई तो जरूर होती और जोरदार ही होती।” शीलू भी टैप ओपेन कर गिलास में जूस लेती हुई बोली।
सूरजमुखी पहले चौंकी फिर मुस्कुराई और प्रशंसा में सर हिलाने लगी।

जिंदगी का कमांड अपने हाथों में लेना होता है। वरना जिंदगी उतना ही देती है जितना हासिए में रहता है। राष्ट्रपति कलाम सहाब की बात बहुत दिल को छूती है कि कोशिश नहीं करने वालों को उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले पाने के बाद छोड़ देते हैं। भाग्य भी तो तब ही जोरदार खेलता है जब उसे थोड़ा घिस माँज कर चमका लिया जाता है।

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